अर्थ : जिसमें किसी शरीर के साथ संयुक्त हो के जीव कर्म करने में समर्थ होता है, उसको 'जन्म' कहते हैं। संदर्भ: |
अर्थ : जिसमें सत्यविद्या से परमेश्वर की प्राप्ति पूर्वक इस जन्म या पुनर्जन्म और मोक्ष में परमसुख प्राप्त होना है, उसको 'परलोक' कहते हैं। संदर्भ: |
अर्थ : जैसा कुछ अपने आत्मा में हो और असम्भवादि दोषों से रहित करके सदा वैसा ही सत्य बोले, उसको 'सत्यभाषण' कहते हैं। संदर्भ: |
अर्थ : जो पुण्य से उल्टा और मिथ्याभाषणादि करना है, उसको पाप कहते हैं संदर्भ: |
अर्थ : जिसका स्वरूप विद्यादि शुभ गुणों का दान और सत्यभाषणादि सत्याचार का करना है, उसको 'पुण्य' कहते हैं। संदर्भ: |
अर्थ : जिसके गुण, कर्म, स्वभाव और स्वरूप सत्य ही हैं, जो केवल चेतनमात्र वस्तु है तथा जो एक अद्वितीय, सर्वशक्तिमान्, निराकार, सर्वत्र व्यापक, अनादि और अनन्त आदि सत्यगुणवाला है, और जिसका स्वभाव अविनाशी, ज्ञानी, आनन्दी, शुद्ध, न्यायकारी, दयालु और अजन्मादि है, जिसका कर्म जगत् की उत्पत्ति, पालन और विनाश करना तथा सर्व जीवों को पाप-पुण्य के फल ठीक-ठीक पहुँचाना है, उसको 'ईश्वर' कहते हैं। संदर्भ: आर्य्योद्देश्य रत्नमाला, ऋषि दयानन्द सरस्वती |
अर्थ : हृदय का स्वामी संदर्भ: |
अर्थ : जिसका हृदय पवित्र/दिव्य हो संदर्भ: |